सारे जहाँ की धूप मेरे घर मे आ गई
मुझ पर था जिस दरख़्त का साया वो गिर गया . !
[कोई शायर ]
या तो वे भिन्न थे ,
या फिर उस दौर की सियासत अलग थी।
राजस्थान में लम्बे समय तक पक्ष विपक्ष में प्रभावी नेता रहे स्व भैरों सिंह शेखावत को आज याद किया जा रहा है। आज उनकी पुण्य तिथि है।
वे भिन्न थे। क्योंकि जब समाज का एक बड़ा हिस्सा सती प्रथा की हिमायत में खड़ा हो गया ,स्व शेखावत ने साहस के साथ इसका विरोध किया /घटना 1987 है/ उनके जाति समाज की जज्बाती भीड़ सड़को पर थी।सती के पक्ष में नारे बलन्द हो रहे थे/ मगर शेखवात ने इसे एक सामाजिक बुराई बताया और विरोध में खड़े हो गए। उन्होंने अपने सियासी नफे नुकसान को नहीं देखा।
उसी वक्त बीजेपी की जोधपुर में राष्ट्रिय कार्यकारणी की बैठक थी। फिर नयी सड़क पर आम सभा/समाज ने इस सभा के विरोध का ऐलान किया। एक विचार आया कि सभा स्थगित कर दी जाए। स्व शेखावत ने पार्टी के इस विचार से असहमति व्यक्त की / सभा हुई। मैं उसके कवरेज को मौजूद था। स्व शेखावत जब बोलने खड़े हुए,कुछ विरोध में नारे लगे। मगर उन्होंने अपने शब्दो से विरोध को निस्तेज कर दिया। उस घड़ी उनके प्रबल समर्थक मांगू सिंह समाज के शायद अकेले व्यक्ति थे ,जो उनके पक्ष में खड़े दिखाई दिए। किसी सरकार से लड़ना आसान है/मगर अपनी ही बिरादरी के सामने खड़े होना मुश्किल है। इसीलिए कहते है नेता वो नहीं है जिसे भीड़ हाँके / बल्कि हुजूम उसकी सरपरस्ती में चले।अब तो नेता जाति पंचायत के सामने घुटनो बैठ जाते है।
दूसरा उनका बड़ा साहसिक कदम जागीरदारी प्रथा उन्मूलन का विधान सभा में प्रस्ताव रखना। वे जनसंघ के विधायक थे। पार्टी पर राजे महाराजो -सामन्तों का प्रभाव था।पार्टी में अलग थलग पड़ गए/लेकिन प्रस्ताव विधान सभा में पारित करवाया।
पूर्व सी एम् श्री अशोक गहलोत उनके धुर विरोधी थे / इन दोनों में गहरे फासले थे। जैसे ही श्री गहलोत पहली बार सी एम् बने ,शपथ लेते ही सबसे पहले स्व शेखावत से मिले और आशीर्वाद लिया। फिर जब स्व शेखावत उप राष्ट्रपति बने ,श्री गहलोत ने उनके सम्मान में भोज दिया। कदाचित यह राजस्थान के सामाजिक मूल्यों का प्रतिविम्ब था। फिर जालोर में एक रेल दुर्घटना हुई ,दोनों साथ साथ सरकारी विमान में गए। जब स्व शेखवात बीमार हुए,श्री गहलोत उनसे नियमित घर जाकर मिलते रहे।
फक्कड़ और फकीर मिजाज के स्व वकार उल अहद सी पी एम् के बड़े तपस्वी नेता थे/कॉमरेड वकार किसी मुद्दे को लेकर एक बार धरना भूख हड़ताल पर बैठ गए /तीन चार दिन में वे जिस्मानी तौर पर कमजोर हो गए।स्व शेखवात ने उस वक्त के गृह मंत्री श्री कैलाश मेघवाल जी को बुलाया ,कहा मौके पर जाओ ,वकार साहिब को भूख हड़ताल तोड़ने के लिए मनाओ / गृह मंत्री अवाक् थे। स्व शेखावत बोले – वकार साहिब हमारे साथ जेल में रहे है। अपने साथी है। क्या आज ऐसा मुमकिन है ? ऐसे अनेको किस्से है। स्व रघुवीर सिंह कौशल ने उनके लोकतान्त्रिक मिजाज के कुछ वाकये बताये थे /
मौजूद भीड़ में श्री घनश्याम तिवाड़ी ने उनसे दो बाते सीखी – विधायी मामलों में निपुणता और वाक पटुता / उनके समर्थको में से एक श्री अखिल शुक्ला उनके जन्म दिन पर हर साल रक्तदान शिविर लगाते रहे। पर श्री शुक्ला को कभी टिकिट की कतार में खड़े नहीं देखा /
अब भारतीय राजनीति ने अमेरिकी मॉडल को अंगीकार कर लिया है -या तो मेरे साथ हो या मेरे दुश्मन हो ,तुम्हे देख लिया जायेगा ! विधान सभा ,संसद ,राजनीति की सभा महफिले वही है,समाज भी वही है ,सियासी दल भी वही है। मगर अब न जाने क्यों सियासत ऐसे किरदार पैदा ही नहीं करती /
सादर
साभार:नारायण बारहठ जी की फेसबुक वॉल से..