राजस्थान में खींवसर और मंडावा की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है, सब लोगो की नज़र है कि क्या राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच गठबंधन होगा या नहीं ?
मुश्किलें ज्यादा हैं और संभावनाएं कम हैं
यह सब उसी दिन तय हो गया था, जब बीजेपी लोकसभा चुनाव में अकेले दम पर 303 सीटें जीतकर आ गई थी, बीजेपी ने नीतीश कुमार जैसी मजबूत ताकत को भी आंखे दिखाना शुरू कर दी थी, उसके बाद से बीजेपी क्षेत्रीय ताकतों पर उतनी निर्भर नहीं है, जितनी पहले थे. अब बीजेपी अपने आपको राज्यों में ओर ज्यादा मजबूत करने की काम में लग गई है.
बीजेपी ने पहले केंद्रीय मंत्रीमंडल में हनुमान बेनीवाल को मंत्री नहीं बनाया. बाद में बेनीवाल ने ख़ुद अपनी सभाओं में कहा कि बीजेपी रालोपा का विलय चाहती थी, लेकिन मैंने पार्टी का विलय नहीं किया, तो इस तरह बीजेपी के लिए बेनीवाल से बड़ी चुनौती उनकी पार्टी आरएलपी है. बीजेपी जानती है कि रालोपा भविष्य में राजस्थान में बड़ी ताकत बन सकती है और बीजेपी कांग्रेस को पसंद करती है, लेकिन दूसरी क्षेत्रीय ताकतों को नहीं.
बाद में बीजेपी ने बेनीवाल को चुनौती मानते हुए सतीश पुनिया को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बना दिया. बीजेपी ने 40 साल में जाट समुदाय से कभी किसी को प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनाया लेकिन अब बीजेपी हनुमान बेनीवाल और रालोपा से मुकाबला करने के मूड में है और उन्हें रोकने के इरादे से सतीश पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है.
इसी बीच में बेनीवाल ने वसुंधरा राजे पर हमला बोला और कहा कि अगर वसुंधरा का बीजेपी में राजस्थान स्तर पर क़द बढ़ता है तो वे बीजेपी के साथ नहीं चल सकेंगे, यानी वसुंधरा राजे राजस्थान में बीजेपी-रालोपा गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं और यह बात हनुमान बेनीवाल को पता चल गई थी, इसीलिए उन्होंने वसुंधरा राजे पर निशाना साधा.
संभावना यह है कि अगर बीजेपी को लगता है कि बेनीवाल आने वाले पंचायत और नगरपालिका चुनाव में बीजेपी का बड़ा नुकसान कर सकते हैं, इसलिए एक बार के लिए पंचायत चुनाव तक गठबंधन बरक़रार रखा जाए, बाकी बातों को बाद में देखा जायेगा. तब हो सकता है कि गठबंधन हो और बीजेपी पंचायत और नगरपालिका चुनाव में बहुत मुश्किल शर्तें बेनीवाल के सामने रखे.
इन परिस्तिथियों में भी अगर बीजेपी रालोपा के साथ गठबंधन करती है तो हनुमान बेनीवाल का क़द राजस्थान की राजनीति में निर्विवाद रूप से बढ़ेगा और वे ओर ज्यादा ताकतवर और मजबूत होंगे.
लेकिन अभी का यह अध्याय एक बार के लिए पंचायत चुनाव में जाकर रूकेगा और देखना होगा कि उस वक़्त बीजेपी और रालोपा के बीच क्या होता है ?
–जितेंद्र महला
(लेखक पत्रकार हैं और स्वतंत्र राजनैतिक टिप्पणीकार हैं)