जनमानस विशेष

Video:बेनीवाल बोले राज्यपाल जी हो गये बूढ़े हैं विधानसभा देख कर बोलते हैं उतरो उतरो हवामहल आगया

By khan iqbal

January 18, 2019

राज्यपाल को समय बर्बाद करने की टिप्पणी से क्या उस विवाद को फिर हवा मिलेगी जिसमे इस पद को समाप्त करने की बात है? राजस्थान विधानसभा में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से खींवसर विधयाक हनुमान बेनीवाल ने सुर्खियां बटोरने की अपनी आदत के तहत इस बार राज्यपाल के स्वास्थ्य पर ही टिप्पणी कर बैठे और कहा कि ” आप अपना इलाज करायें ,इधर टाइम पास करने से क्या फायदा।” राज्य विधानसभा सभा मे घटित इस घटना ने उस विवाद को और जन्म दे दिया है जिसमे राज्यपाल के पद को समाप्त करने की बात बार- बार उठती है । हालाँकि राज्यपाल का पद भारतीय संसदीय व्यवस्था में राज्य शासन के एक औपचारिक प्रधान का है न कि वास्तविक प्रधान । विगत वर्षों में राज्यपाल के पद के अधिकाधिक राजनीतिकरण के कारण यह विवादों के घेरों में भी आया है । केंद्र द्वारा राजनीतिक प्रयोजनों के लिए राज्य की सरकार को अस्थित करने में राज्यपाल के पद का दुरुपयोग करने के आरोपो के कारण यह केंद्र-राज्य सम्बन्धो में विवाद का भी कारण बना है । अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में राष्ट्रीय शासन लागू करने की शिफारिश की शक्ति का कतिपय राज्यपालों द्वरा केंद्र के इशारों पर जिस तरह प्रयोग किया गया है,वह अत्यंत विवादों का कारण बना है। कई बार तो यह माँग भी उठाई गई है कि राज्यपाल के पद को ही समाप्त कर दिया जाये ? राज्यपाल के पद प्रतिष्ठा और दूसरी तरफ इस पद की गौण स्थिति के मामलों में भारतीय राजनीतिक महापुरुषों के मिले-जुले विचार हमारे समक्ष है जहाँ जवाहरलाल नेहरू ने राज्यपाल को शासन का पाँचवाँ स्तम्भ कहा है वहीं प्रथम महिला राजयपाल सरोजनी नायडू ने इसको लेकर कहा है कि ”राज्यपाल सोने के पिजरे में बंद चिडिया है।” वहीं विजयलक्ष्मी पंडित राज्यपाल के पद को वेतन के आकर्षण से कहीं अधिक नही मानती है । वहीं पट्टादीसीतारमैया ने बहुत ही व्यवहारिक बात राज्यपाल के पद के बारे में कही है कि राज्यपाल का पद मेहमानों को चाय- नाश्ता और भोजन के लिए आमंत्रित करना मात्र है । कहने का तात्पर्य यह निकलता है कि बेनीवाल ने जरूर बदजुबानी करी है परंतु समय-समय पर राज्यपाल के पद को बरकरार रखने के प्रति विद्वानों और राजनीतिशास्त्र के पंडितों ने इसके प्रति सकारात्मकता कतई नही प्रकट की ।