हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रभारी महामंत्री अविनाश पाण्डे को साथ लेकर आखिर तक सचिन पायलट की कांग्रेस मे वापसी के विरोध करते रहने के बावजूद दिल्ली मे मोजूद दिग्गज कांग्रेस नेताओं की पहल पर सचिन पायलट की गांधी परिवार के पूत्र-पूत्री की उपस्थिति मे ससम्मान वापसी मे उनका गूजर नेता होना भी एक अहम कारण माना जा रहा है।
कांग्रेस का एक समय था जब पार्टी मे अवतार सिंह भडाना, रामवीर सिंह विधुड़ी व राजेश पायलट सहित कुछ अन्य गुजर राजनीतिक नेता समय समय पर हुवा करते थे। दिल्ली, यूपी, हरियाणा, राजस्थान व जम्मू काशमीर मे खासतौर पर गुजर मतदाताओं की एक बडी तादाद मोजूद है।
जिनको साधने के लिये गुजर बिरादरी मे सामाजिक नेता तो ओर भी हो सकते है लेकिन बिरादरी मे वर्तमान समय मे कांग्रेस के पास सचिन पायलट ही लोकप्रिय गुजर राजनीतिक नेता है। जिसके नाम पर गुजर मतदाताओं को लुभाया जा सकता है।
इसके विपरीत अशोक गहलोत मैनेजर अच्छे हो सकते है लेकिन उनके नाम पर उनकी बिरादरी के मत राजस्थान मे ही कांग्रेस को अच्छी तादाद मे कभी नही नही मिल पाये है। वही गहलोत के नाम से राजस्थान व उससे बाहर उनकी बिरादरी के मतो को साधना नामुमकिन बताते है।
सचिन पायलट के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनकर राजस्थान आने के बाद तीन विधानसभा व दो लोकसभा के हुये उपचुनाव मे कांग्रेस उम्मीदवारों के जीतने मे गुजर मतदाताओ का कांग्रेस की तरफ आकर पायलट को अपना राजनीतिक नेता मानते हुये मतदान करना प्रमुख कारण रहा बताते।
गुजर वेसे तो परम्परागत रुप से माली मतदाताओं की तरह गुजर भी भाजपा का मतदाता रहा है। लेकिन जबसे सचिन पायलट को अध्यक्ष बनाकर हाईकमान ने राजस्थान भेजा तब से आम गुजर मतदाता को लगा कि सचिन को मुख्यमंत्री बनाने के लिये सभी जगह कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष मे मतदान करना अनिवार्य है। 2018 के विधानसभा चुनाव मे गुजर मतदाताओं ने उक्त लाईन पर ही मतदान किया था।
कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत की इच्छा के विपरीत राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की पहल पर सचिन पायलट की कांग्रेस मे वापसी के अनेक कारणो मे एक प्रमुख कारण दिल्ली-यूपी-हरियाणा-राजस्थान व जम्मू काशमीर मे गुजर मतदाताओं की बहुलता होने पर उन मतो को साधने के लक्ष्य होना भी माना जा रहा है।
– अशफ़ाक कायमखानी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक है)