जनमानस विशेष

मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूंढना बंद नहीं हुआ तो मंदिरों के नीचे बौद्ध विहार ढूंढेंगे–राजरतन

By Raheem Khan

December 12, 2024

अजमेर। बुधवार दिनांक 11 दिसंबर को सौशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया SDPI का डेलिगेशन अजमेर पहुंचा और वर्तमान में दरगाह पर जो सर्वे के लिए रिट लगा रखी है उसके संदर्भ में अंजुमन कमेटी कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की।

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद शफी, राष्ट्रीय महासचिव यास्मीन फारुकी, राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष अशफ़ाक़ हुसैन, संविधान सुरक्षा आंदोलन के सचिव तथा इंडियन बुद्धिस्ट सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर रजरतन अम्बेडकर एवं दरगाह अंजुमन कमेटी के सेकेट्री डॉक्टर सरवर चिश्ती ने सम्बोधित किया।  याचिका कर्ता के बेमानी कृत्य पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी से इस प्रकार की रिट जिनसे समुदायिक विवाद पैदा होता हो उनको रोकने की मांग की। इस मौक़े पर डेलिगेशन ने ख़्वाजा हज़रत मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की भी ज़ियारत कर मुल्क में अमन चैन की दुआ की।

सौशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस.डी.पी.आई.) द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद शफी ने 800 साल पुरानी दरगाह अजमेर शरीफ की ऐतिहासिक अहमियत को रेखांकित करते हुए एक कड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि यह दरगाह हमेशा से धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक रही है। शफी ने बताया कि मुगल साम्राज्य के दौरान स्थापित इस पवित्र स्थल को मराठों, राजपूतों और सिंधियाओं जैसे गैर-मुस्लिम शासकों का भी पूरा समर्थन मिला जो 1719 से 1947 तक जारी रहा। यहां तक कि ब्रिटिश शासकों ने भी इस दरगाह की पवित्रता को मान्यता दी और उसका सम्मान किया।

शफी ने कहा कि दरगाह अजमेर शरीफ की पवित्रता पर कभी किसी ने सवाल नहीं उठाया, चाहे सत्ता में कोई भी रहा हो। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के दौर में इसके धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज पैसे विध्वंसकारी तत्वों की वैधता दी जा रही है जो देश की एकता और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।”

उन्होंने सरकार पर देश में ऐसे विभाजनकारी माहौल को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को कमजोर करने की साजिश है। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनकी पार्टी इस तरह की नापाक कोशिश का पूरी ताकत से विरोध करेगी।

शफी ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वह निचली अदालतों के उन फैसलों को पलटे, जिन्होंने धार्मिक स्थलों की स्थिति पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं को स्वीकार किया है। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव द्वारा विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ की गई टिप्पणियों पर भी गहरी नाराजगी जताई। शफी ने कहा, “इस तरह की टिप्पणियों ने न्यायपालिका में मुस्लिम समुदाय के विश्वास को हिला दिया है। यह सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के लिए नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के लिए भी एक चुनौती है कि वे न्यायपालिका की निष्पक्षता को बहाल करें और संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा करें।”

शफी ने देशवासियों से अपील की कि वे धार्मिक स्थलों के राजनीतिकरण का विरोध करें और देश की एकता और सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए एकजुट हों। उन्होंने चेतावनी दी कि इन स्थलों की पवित्रता को नुकसान पहुंचाने की कोई भी कोशिश देश की स्थिरता और एकता के लिए गंभीर परिणाम ला सकती है।

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) ने अजमेर की स्थानीय अदालत में दायर याचिका को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने इस नारे को “सफेद धोखा” करार दिया, अगर यह सबका इंसाफ सुनिश्चित नहीं करता। याचिका में अजमेर दरगाह शरीफ के नीचे मंदिर होने का दावा किया गया है. जिसे लेकर देश में धर्मनिरपेक्षता पर बहस छिड़ गई है।

राजरतन अम्बेडकर संविधान सुरक्षा आंदोलन के सचिव और इंडियन बुद‌धिस्ट सोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि अजमेर दरगाह का जो अभी इश्यू चल रहा है. मैं उसमें बु‌द्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया का स्टैंड विलयर करना चाहता हूँ।

भारत ने जब आजादी हासिल की उस समय जो स्टेटस वर्शिप प्लेसेस का था. प्लेसेस ऑफ वर्शिप अक्ट 1991 में जरूर बना है लेकिन 1947 का जो स्टेटस है वो उन्होंने कबूल किया हुआ है। यानी कि अगर कोई मस्जिद 1947 मैं उससे पहले अगर कोई मंदिर है तो वो मस्जिद ही एक्सेप्ट की जाएगी और उसी तरह से अगर कोई मंदिर 1947 में यानी आजादी के बाद अगर वो मंदिर है लेकिन आजादी से पहले अगर वो मस्जिद था तो वो मंदिर ही एक्सेप्ट किया जाएगा, ये स्टेटस भारत ने कबूल किया हुआ है, भारत के संविधान में कबूल किया हुआ है।

संविधान में यह होने के बाद भी कई सारे मामले क्रिएट करने की कोशिश की, तब जाके 1991 में ये एक्ट भी बन गया कि जो 1947 की पोजीशन है, 1950 की पोजीशन है भारत का संविधान लागू होने पर जो पोजीशन है वही एक्सेप्ट की जाएगी ।

अब ये प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 भारत में लागू होने के बावजूद भी अगर कोई कोर्ट इसमें इन्वेस्टिगेशन करने के ऑर्डर्स दे रहा है, तो ये कही ना कही भारत के संविधान का उल्लंघन हो रहा है।

जो एक्ट बने हुए है उनका उल्लंघन हो रहा है। अगर मस्जिद की इन्वेस्टिगेशन्स की परमिशन मिल रही है कि उसके नीचे मंदिर है या क्या है?  तो इसमें बु‌द्धिस्ट सोसाइटी ऑफ़ इंडिया भी पीछे नहीं रहेगी और ऐसे हालात में जिन जिन बुद्ध विहारो पर मंदिरों का कब्जा हो चुका है, उन मंदिरों के भी इन्वेस्टिगेशन करवाने की मांग बुद्धिस्ट सोसाइ‌टी ऑफ इंडिया करेगी।

हम नहीं चाहते की किसी मंदिर या मस्जिद का इन्वेस्टिगेशन हम बु‌द्धिस्ट पार्टीस करें, जो पोजीशन 1947 की है, हम वो एक्सेप्ट करते हैं, भारत के संविधान की मानते हैं, 1991 के अक्ट को भी मानते हैं। लेकिन अगर कोई इस देश में जो सामाजिक तानाबाना है उसको बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है और धर्मनिरपेक्षता की कोई हटाने की कोशिश कर रहा है तो उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि इस देश में बु‌द्धिस्ट पार्टीस भी है। इसलिए अगर ऐसी इन्वेस्टिनेशन करवाओगे, तो बु‌द्धिस्ट भी पीछे नहीं रहेंगे। जिन जिन बुद्ध बिहारों पर कब्जा हो चुका है, उनकी भी इन्वेस्टिगेशन की मांग करेंगे। मैने ऐसी दो पिटिशन आलरेडी तैयार कर रखी हुई है। पहली पीटिशन्स तिरुपति बालाजी के मंदिर के ऊपर है और सेकंड सोमनाथ मंदिर पर है।

अजमेर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में, एस.डी.पी.आई. की राष्ट्रीय महासचिव यासमीन फारुकी ने इस याचिका को संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के लिए चुनौती बताया। उन्होंने कहा, ‘यह याचिका बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की परीक्षा है। प्रधानमंत्री मोदी, संविधान के सबसे बड़े संरक्षक के रूप में यह सुनिश्चित करें कि न्याय हो। ख्वाजा साहब के करोड़ों अनुयायी उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं।”

यासमीन फारुकी ने दिसंबर के महीने में प्रधानमंत्री मोदी के सामने तीन अहम अवसरों का जिक्र किया, जिनसे वह न्याय और समावेशिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी 17 दिसंबर को जयपुर आ रहे हैं, जो अजमेर से केवल 120 किलोमीटर की दूरी पर है। फारूकी ने इस अवसर का उपयोग कर हिंदू सेना और याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता की निंदा करने की अपील की। उन्होंने कहा, “यह प्रधानमंत्री के लिए मुस्लिम समुदाय को यह भरोसा दिलाने का एक सुनहरा मौका है कि वह धर्मनिरपेक्षता और समावेशिता के प्रति वचनबद्ध है।”

स्थानीय अदालत ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को 20 दिसंबर तक याचिका पर प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया है। एस.डी.पी.आई. ने कहा कि यह प्रतिक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इसे मोदी सरकार की आधिकारिक राय के रूप में देखा जाएगा। फारुकी ने कहा, “पूरे भारत की नजरें इस मामले पर टिकी हैं। मंत्रालय की प्रतिक्रिया के शब्द प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत राय के रूप में गूंजेंगे।”

एसडीपीआई ने ख्वाजा मोइनु‌द्दीन चिश्ती के वार्षिक उर्स के दौरान प्रधानमंत्री ‌द्वारा भेजी जाने वाली चादर को एक महत्वपूर्ण सांकेतिक अवसर बताया। 

अंत में सभी पत्रकार और मीडिया वालों का शुक्रिया SDPI राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष अशफ़ाक हुसैन ने किया।