ऐसा नहीं है कि बेरोजगारों को ही पेपर लीक और किसानों को ही खेत नीलामी की जैसी नायाब सौगातें मिली हैं। सरकारी कर्मचारियों से किये गये राज्य सरकार के वादे भी अधूरे पडे हैं। बेरोजगार और किसान तो आवाज उठा भी सकते हैं, सरकारी सेवा नियमों के चलते सरकारी कार्मिक तो दबी जुबान में भी चर्चा तक नहीं कर सकते।
जन घोषणा पत्र को पवित्र दस्तावेज मानने, अपने प्रत्येक वादे को समय पर पूर्ण कर गुड गवर्नेंस को धरातल पर उतारने का दावा करने वाली राजस्थान सरकार को अपने मुखिया द्वारा की गई बजट घोषणा को भूल गई लगती है।
गत 24, फरवरी,2021 को सीएम ने बजट पेश किया था, नया बजट आने को है लेकिन घोषणा संख्या 242 को साकार करने के कितने प्रयास हुये हैं, यह राज्य के सभी कार्मिक जानते हैं क्योंकि यह घोषणा उन्हीं के कल्याण और राजकाज के बेहतर संचालन के नाम पर की गई थी।
दरअसल बजट घोषणा संख्या 242 के अनुसार कर्मचारी कल्याण कोष गठित कर राज्य सरकार के सेवारत और सेवानिवृत अधिकारियों, कर्मचारियों के लिये विभिन्न योजनाओं के लिये कम ब्याज दर पर लोन की व्यवस्था की जानी है ताकि बेटी की शादी, आवास निर्माण के समय बैंक और सूदखोरों से अधिक दर पर ब्याज देने के लिये भटकने के बजाय राज्य सरकार द्वारा ही उचित ब्याज दर पर लोन की व्यवस्था हो सके।
बजट घोषणा और इसके पास होने के कई महीनों बाद 6 जुलाई को राज्य सरकार ने प्रेस नोट जारी कर बताया कि सीएम ने वित विभाग के प्रस्ताव पर 3 हजार करोड रूपये के कर्मचारी कल्याण कोष के गठन को मंजूरी दे दी है। इसमें आवास निर्माण के लिये 15 लाख, बच्चों की उच्च शिक्षा के लिये 5 लाख, पर्सलन लोन व वाहन खरीद के लिये 5-5 लाख रू के साथ-साथ अन्य बिन्दु भी शामिल थे।
प्रेस नोट में यह भी बताया गया था कि इससे कार्मिकों के कल्याण व सामाजिक सहायता के साथ-साथ राजकार्य के बेहतर निष्पादन में भी मदद मिलेगी। अब इस बेहतर निष्पादन में बाधा कौन डाल रहा है, समझ से परे है।
26 जुलाई को वित्त(बीमा) विभाग के प्रमुख शासन सचिव अखिल अरोडा ने इस कोष के गठन का आदेश जारी किया तथा विस्तृत दिशा-निर्देश पृथक से जारी करने की सूचना इस आदेश में दी। इस आदेश के 6 माह बाद भी कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं हुये हैं। 3000 करोड रू के कर्मचारी कल्याण कोष से 1 पैसा भी कार्मिकों को लोन के रूप में नहीं मिल पाया है।