जनमानस विशेष

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का डेलिगेशन पहुंचा अजमेर दरगाह

By Raheem Khan

December 14, 2024

अजमेर । ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एक डेलीगेशन अजमेर पहुंचा। यहां पहुंच कर डेलिगेशन ने एक प्रेस कांफ्रेंस भी की। डेलिगेशन में मौलाना फजलुर्रहीम मुजदिदी (महासचिव मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड), डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास (प्रवक्ता, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड),मौलाना अबू तालिब रहमानी, कोलकाता, (सदस्य, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड), मोहम्मद नाजिमुद्दीन, (प्रदेश अध्यक्ष, जमाअत-ए-इस्लामी हिंद, राजस्थान) शामिल रहे। 

प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा की ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अजमेर की ऐतिहासिक दरगाह पर किए गए मंदिर होने के आधारहीन दावे की पूरी तरह खारिज कर दिया है। बोर्ड को यह देखकर गहरी हैरानी और चिंता हुई है कि ऐतिहासिक साक्ष्यों कानूनी दस्तावेज और 1991 के प्लेस ऑफ वरशिप एक्ट के बावजूद अजमेर की स्थानीय अदालत ने इसे स्वीकार करते हुए नोटिस जारी कर दिया।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस बात पर गहरी नाराजगी और चिंता जताई है कि देश की विभिन्न अदालतों में मस्जिदों और दरगाहों पर दावों का नया सिलसिला शुरू हो गया है। अभी सम्भल की जामा मस्जिद का मामला खत्म भी नहीं हुआ था कि विश्व प्रसिद्ध अजमेर की दरगाह पर संकटमोचन महादेव मंदिर होने का दावा कर दिया गया। शिकायतकर्ता ने दरगाह कमेटी, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पार्टी बनाया है।

पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास ने कहा कि, प्लेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 के मौजूद होने के बावजूद ऐसे दावे कानून और संविधान का खुला मजाक है। संसद में यह कानून लागू करते समय यह स्पष्ट किया गया था कि 15 अगस्त 1947 की जो पूजा स्थल (मस्जिद, मंदिर, गुरु‌द्वारा, बौद्ध विहार, चर्च आदि) जिस स्थिति में थे, वे उसी स्थिति में बने रहेंगे और उन्हें चुनौती नहीं दी जा सकेगी। इस कानून का उद्देश्य साफ था कि बाबरी मस्जिद के बाद किसी और मस्जिद या अन्य धर्मों के पूजा स्थलों को निशाना न बनाया जाए।

हालांकि, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी), मथुरा की शाही ईदगाह, भोजशाला मस्जिद (मध्य प्रदेश), टीले वाली मस्जिद (लखनऊ), संभल की जामा मस्जिद, जौनपुर की मस्जिद और अब अजमेर की ऐतिहासिक दरगाह पर दावे किए जा रहे हैं।

यह और भी गंभीर बात है कि इस कानून के होते हुए अदालत ने वादी विष्णु गुप्ता की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया और सभी पक्षी को नोटिस जारी कर दिया। हिंदू पक्ष

ने दावा किया है कि दरगाह की भूमि पर भगवान शिव का मंदिर था, जहां पूजा और जलाभिषेक किया जाता था।

बाबरी मस्जिद केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने न केवल इस कानून का संदर्भ दिया बल्कि यह भी कहा था कि इस कानून के रहते कोई नया दावा पेश नहीं किया जा सकता। लेकिन जब ज्ञानवापी मस्जिद पर निचली अदालत ने दावा स्वीकार कर लिया तो मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्लेस ऑफ वरशिप एक्ट के तहत इस दावे को अदालत को खारिज करना चाहिए।

अजमेर की दरगाह और हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की शख्सियत न केवल मुसलमानों बल्कि हिंदुओं के लिए भी समान रूप से आदरणीय और श्रद्धा की पात्र है। हमें डर है कि अगर इस सिलसिले को नहीं रोका गया, तो यह देश में अस्थिरता और अशांति का कारण बन सकता है।

यह केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे अपने बनाए हुए कानून प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1997 को सख्ती से लागू करें।

हम भारत के सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि वह तुरंत इस मामले का संज्ञान ले और निचली अदालतों को निर्देश दें कि इस कानून के रहते किसी और विवाद के लिए दरवाजा न खोलें। अन्यथा, यह आशंका है कि पूरे देश में विस्फोटक स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार जिम्मेदार होगी।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सैयद सरवर चिश्ती, सज्जादानशी, दरगाह हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती,  सैयद कलीमुद्दीन चिश्ती नायाब सदर, सैयद गफ़्फ़ार हुसैन काज़मी ,सैयद अब्दुल हक ,सैयद शारिब संजरी  ,सैयद शममी उस्मानी आदि मौजूद रहे।