नज़रिया

कांग्रेस को बचाना है तो फिर से मौलाना आज़ाद के सिद्धान्तों पर चलना होगा!

By khan iqbal

May 30, 2019

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद पराजित होने वाली पार्टियाँ अपनी हार पर चिंतन और मंथन कर रही हैं। लेकिन ये मंथन तब तक अधूरा है जब तक की Idea of India पर ये पार्टियाँ लौट नहीं जातीं। Idea of India को समझना तब तक अधूरा रहेगा जब तक कि Idea of Nehru पर विमर्श न हो। और नेहरु का Idea मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के विचार के बिना अधूरा है।

सभी हथकण्डे अपनाने के बाद भी राजनीति के अखाड़े में चित होने वाली पार्टी कांग्रेस को ये सीखना होगा कि आख़िर उस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आज़ाद अपने भाषणों में वो कौन सी बातें कहा करते थे जिसे सभी भारतवासी पसंद करते थे।

राहुल जी, आप जब भी गाँधी जी की बात करते हैं तो वो गोडसे को ज़िंदा कर देते हैं और दोबारा गाँधी वध के कृत्य को अंजाम देते हैं। अगर आप मौलाना आज़ाद के विचारों की बात करेंगें तो कोई गोडसे उनके विचारों की हत्या के लिए नहीं आएगा अगर कांग्रेस ख़ुद उनके विचारों की हत्या ना करे।

राहुल जी, कांग्रेस को अपने अतीत में जाकर उन सुनहरे पन्नों को खोलना होगा कि जब राँची की जामा मस्जिद में मौलाना आज़ाद जुमे का ख़ुतबा/भाषण दिया करते थे तो आस-पास के हिंदू भी मस्जिद के क़रीब आकर उनकी एकता, भाईचारा, प्रेम और सौहार्द की बातों को ग़ौर से सुना करते थे।

अक्सर वहाँ के हिंदू मौलाना आज़ाद से कहते कि क्या हमें भी आपके जुमे का भाषण सुनने के लिए मस्जिद में आने की आज्ञा मिल सकती है? फिर उन हिंदू भाइयों के लिए वहाँ जुमे का भाषण सुनने का प्रबन्ध किया गया।

आज जब हम उत्तर प्रदेश के नोएडा के पार्कों में जुमे की नमाज़ पर प्रतिबंध को देखते हैं तो ये सोचने पर मजबूर होते हैं कि अगर कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक विरासत और विभिन्नता की संस्कृति को ईमानदारी से आगे बढ़ाया होता तो जुमे के दिन नोएडा के पार्कों में योगी जी पुलिस लगाकर हिंदू भाइयों के बैठने और इमाम के भाषण को सुनने का प्रबन्ध करते ना कि उन पार्कों में पानी डलवाकर पुलिस लगाकर जुमे की नमाज़ को रोकने का।

अगर कांग्रेस ने अपने पूर्व अध्यक्ष मौलाना आज़ाद का सिद्धान्त और राजनीतिक शैली अपनाई होती तो देश को ये दिन नहीं देखना होता कि गाँधी के हत्यारे का गुणगान करने वाले संसद में पहुँचते।

निःसंदेह कांग्रेस पार्टी ने इस देश की आज़ादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका एक सुंदर व स्वर्णिम इतिहास है मगर कुशल नेतृत्व, ज़मीन से जुड़ाव और दूरदर्शिता के अभाव में ये पार्टी राजनीति की खण्डहर इमारत बन कर रह गयी है जिसके पास न तो आकर्षक ‘व्यक्तित्व’ है और न ही प्रभावकारी ‘विचारधारा.’

इन सेक्युलर राजनीतिक पार्टियों को जनेऊ की सियासत छोड़ कर मौलाना अबुल कलाम के राजनीतिक, सामाजिक विचार को समझना होगा तो शायद कांग्रेस सत्ता विस्थापन के अभिशाप से निकल सकती हैं।

ये कहना बहुत दुखद है कि जिस कांग्रेस पार्टी के सबसे युवा अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद रहे हों उन्हीं को कांग्रेस पार्टी अपने बैनर, अपने भाषण और अपने राजनीतिक इतिहास से निकालकर देश की विभिन्नता का उत्सव मनाना चाहती है।

राहुल जी, मोदी विरोध और राफेल की पोल खोलने मात्र से सत्ता में वापसी सम्भव नहीं हो सकती है। अगर वापसी हो भी गयी तो केवल सत्ता प्राप्त करना Idea of India नहीं है बल्कि देश के लोगों को संविधान की बुनियाद पर एक करना और प्रेम व सौहार्द की माला में विभिन्नता की मोतियों को पिरोना भी Idea of India है।

जहाँ बराबरी, समानता, भाईचारा लोगों के ख़ून में दौड़ता हो। और ये काम सत्ता से बाहर रहकर भी किया जा सकता है।

विरोध की राजनीति से आप राजनीति में विरोध की संस्कृति को तो मज़बूत बना सकते हैं मगर सकारात्मक विचार और परिवर्तन की राजनीति के लिए ये काफ़ी नहीं है। इसके लिए कांग्रेस को मौलाना आज़ाद को समझना और उनके विचारों को आत्मसात करना होगा।

Masihuzzama Ansari