राजस्थान विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस से टिकट ना मिलने वाले अधिकांश नेताओं ने विधायक हनुमान बेनीवाल की पार्टी से चुनाव लड़ा। लेकिन उनमे से कोई चुनाव नही जीत पाये। केवल बेनीवाल स्वयं व दो अन्य उम्मीदवार विधायक बन पाये है। लोकसभा चुनाव को लेकर कभी कांग्रेस व कभी भाजपा से रालोपा के गठबंधन की चर्चा चली।
लेकिन आखिरकार चार अप्रेल को भाजपा से बेनीवाल का नागोर सीट को अपने खाते मे लेकर बाकी चोबीस सीट भाजपा के उम्मीदवार को देने पर गठबंधन होने के ऐलान के बाद राजनीतिक समीक्षक कहने लगे है कि गठबंधन होने के बावजूद बेनीवाल नागोर से ज्योती मिर्धा के सामने चुनाव हारेगे। बेनीवाल के कुछ मत भाजपा को कुछ जगह मिल सकते है। पर वो मत उनकी हार को जीत मे बदल नही पायेंगे।
हालांकि बेनीवाल का भाजपा से गठबंधन होने से बेनीवाल को बडा व कांग्रेस को छोटा नूकसान एवं भाजपा को जरा फायदा होने की उम्मीद जताई जा रही है। दूसरी तरफ रालोपा के विधानसभा चुनावो मे अचानक बने अधिकांश उम्मीदवारो ने प्रदेश भर मे कांग्रेस उम्मीदवारो के पक्ष मे पहले से काम करना शूरु कर रखा है।
जबकि बेनीवाल के भाजपा के साथ गठबंधन करने की खबर से विधानसभा उम्मीदवारो मे अधिकांश उम्मीदवार बेनीवाल के समर्थन मे आने से दूरी बना ली है।
नागोर को सामने रखकर बेनीवाल के लिये देखे तो पाते है कि आनंदपाल को लेकर एक बडा तबका उनसे अदावत रखता है। वही भाजपा नेता यूनूस खान, ठाकूर मनोहर सिह व गजेन्द्र सिंह खींवसर से उनकी अदावत जग जाहिर है। भाजपा के परम्परागत मतदाताओं मे से एक बडा तबका बेनीवाल को लेकर अलग सोच व नजरिया पहले से बना रखा है। कांग्रेस उम्मीदवार ज्योती मिर्धा की बढत लगातार बेनीवाल पर रहने का अनुमान बताया जा रहा है।
कुल मिलाकर यह है कि भाजपा गठबंधन के खिलाफ रालोपा के विधानसभा चुनावों मे उम्मीदवार रहे अधिकांश उम्मीदवार जल्द कांग्रेस का दामन थामने वाले है। जबकि कांग्रेस-भाजपा से समान दूरी रखने के कारण तीसरे विकल्प की सोच रखने वाले युवा मतदाता जो बेनीवाल के साथ जुड़े हुये थे वो मत अब बेनीवाल के साथ प्रदेश भर मे भाजपा के साथ किसी परिस्थितियो मे भी जाने वाला नही है।
दूसरी तरफ नजर डाले तो पाते है कि बेनीवाल के भाजपा के विधायक रहने के अलावा भाजपा से हमेशा नजदीकियां रही है। केवल मात्र पूर्व मुख्यमंत्री राजे से छत्तीस का आंकड़ा था। तभी बताते है कि बेनीवाल व भाजपा गठबंधन से वसुंधरा राजे को पूरी तरह दूर रखा है।
-अशफ़ाक़ कायमखानी
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक है)