मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं दलित एक्टिविस्ट एडवोकेट ताराचंद वर्मा लिखतें है कि दलितों की सुरक्षा और पुनर्वास करने में सरकारी तंत्र पूरी तरह विफल रहा है।
हम आज दिनांक 30 मई 2019 को राजस्थान के झुन्झुनू जिले की खेतड़ी स्थिति गांव किशनपुरा में उत्पीड़न के शिकार दलित परिवार से मिले तो परिवार ने बताया कि दिनांक 26 मई 2019 को रात्रि 11 बजे राजपूत समुदाय के करीब 20-25 लोगो ने हथियारों से लैस होकर उन पर हमला कर दिया जिसमें दलित परिवार के 9 लोग बहुत ही गम्भीर रूप से घायल हो गए, जिनमे से 4 आज भी सीरियस होने के कारण सवाई मानसिंह अस्पताल जयपुर में भर्ती है।
घटना बहुत ही भयावह है इसलिए पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया है और न चाहते हुई भी सभी नामज़द आरोपियों को गिरफ्तार करना पड़ेगा, चालान होगा, मामला कोर्ट में सुना जाने के बाद फैसला सुनाया जाएगा।
पर सवाल इस बात का है कि क्या सरकार के इस तंत्र ने दलितों के साथ क़ानून सम्मत व्यवहार किया है?
अगर हम इस मामले को बारीकी से विधि सम्मत देखे तो स्पष्ट होता है कि इस पूरे मामले में तंत्र पूरी तरह विफल रहा है।
घटना के बाद जब पीड़ितों को इलाज के लिए खेतड़ी से जयपुर रेफर किया गया तो आवश्यकता अनुसार सरकारी एम्बुलेंस मुहैया नही करवाई गई, जयपुर में जहाँ कानून के तहत सभी तरह का इलाज सरकार द्वारा कानून सम्मत (अनुसूचित जाति जनजाति क़ानून के तहत) निःशुल्क उपलब्ध करवाना चाहिए था वही पीड़ितों को करीब 50 हजार रुपये खर्च करने पड़े।
इसी प्रकार सरकार का दायित्व बनता है कि इलाज के दौरान पीड़ितों की देखभाल करने वाले परिजनों को रहने खाने की व्यवस्था देवे इस पर जिला तंत्र का कतई ध्यान नही है।
घायलों को हरसंभव आवश्यक इलाज दिया जाना चाहिए लेकिन अस्पताल प्रशासन की नीयत उन्हें जल्द छुट्टी देकर घर भेजने में ही है। पीड़ित अब भी मजबूरन नीम का थाना जैसे छोटे कस्बे में इलाज ले रहे है।
इन सभी हालात से साफ होता है कि प्रदेश के तंत्र को ही कानून के प्रावधानों की सही व पूरी जानकारी नही है , जिसके कारण दलितों को न्याय की लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ रहा है, तंत्र पूरी तरह विफल है।
-तारा चन्द वर्मा एडवोकेट