नज़रिया

क्या सवर्ण आरक्षण से पिछड़ों की राजनीति करने वालों की वैचारिक कलई खुल गयी है

By khan iqbal

January 16, 2019

गरीब सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का संविधान संशोधन विधेयक जो अब महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद क़ानून बन चुका है,पर जितना मंथन करता हूं, उतनी ही गुत्थी उलझती जाती है…सवर्ण आरक्षण

ये खयाल कि सामाजिक न्याय के पुरोधा,संविधान में आरक्षण की जो रूह है,उससे वाक़िफ नहीं हैं,वे बस इस पर ख़ुश हैं कि चलो एससी-एसटी और ओबीसी के साथ-साथ बेचारे गरीब सवर्णों को भी कुछ मिल गया, बहोत बचकाना खयाल लगता है.

…अम्बेडकर से लेकर लोहिया होते हुए मंडल और बहुजन आंदोलन तक को कैसे नज़र अंदाज़ कर दिया जाए,जिसमें आरक्षण के संवैधानिक रूह ‘हिस्टोरिकल डिस्क्रिमिनेशन’ के हवाले से शोर-शराबा आज़ाद भारत के इतिहास का अहम हिस्सा है..सवर्ण विरोध से पिछड़ों और दलितों की राजनीति शुरू हो कर बुलंदी तक पहुंची…

मंडल की सिफारिशों पर सवर्णों ने जो तमाशा किया,आत्मदाह तक की घटनाएं हुईं,उसे कैसे इतनी जल्दी ये पुरोधा भूल गए…

फिर गुत्थी यूं भी उलझती है कि चलो मान लिया कि लोकसभा और राज्यसभा में इस बार मुट्ठी भर पिछड़ों और बहुजनों की हैसियत ही किया है,उनके सपोर्ट और विरोध से क्या हो जाता मगर संसद से बाहर पिछड़ों और बहुजनों की जो राजनीतिक और सामाजिक शक्तियां हैं,वो क्यूं बस फेसबुक की हद तक मामूली चीख-पुकार पर संतुष्ट हैं?छात्र शक्तियों में केवल एक मुस्लिम पहचान वाली छात्र शक्ति SIO देशव्यापी आवाज़ उठा रही है..

कैंपस और कैंपस से बाहर पिछड़ों और बहुजनों की एकता का नारा लगाने वाले कहां हैं?..राजनैतिक दलों में केवल राजद ने पार्लियामेंट और ट्वीटर तक थोड़ी मुखालिफत दिखाई.. आरक्षण की वजह से मलाईदार पिछड़े बने ओबीसी और दलित एलिट्स क्यों ख़ामोश हैं?उलझन यूं भी बढ़ती है कि सुप्रीम कोर्ट में इस ताज़ा 124 वें संशोधन को चुनौती देने वाले आरक्षण विरोधी ‘यूथ फॉर इक्वैलिटी’ वाले हैं,कोई दलित और पिछड़े सूरमा या समूह मेरी जानकारी की हद तक नहीं पहुंचा अब तक…

-शिबली अरसलान