नई दिल्ली। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कांफ्रेंस में इसके शीर्ष नेतृत्व ने गाजा में चल रहे नरसंहार, भारत भर में मुस्लिम विरोधी हिंसा में चिंताजनक वृद्धि और मुस्लिम संपत्तियों और संस्थानों को निशाना बनाने के लिए बुलडोजर के निरंतर इस्तेमाल की कड़ी निंदा की है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा: “हम गजा में नए इजरायली हमले “ऑपरेशन गिदोन चैरियट्स” और फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ जारी नरसंहार की कड़ी निंदा करते हैं। इस क्रूर हमले में अंधाधुंध बमबारी, जमीनी आक्रमण, तथा घरों, अस्पतालों और स्कूलों का विनाश शामिल है। इस संघर्ष में अब तक 53,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें लगभग 18,000 निर्दोष बच्चे भी शामिल हैं। स्कूलों और अस्पतालों पर जानबूझकर बमबारी करना तथा सहायता वितरण केन्द्रों पर नरसंहार करना युद्ध अपराध से कम नहीं है। गजा के नागरिक बुनियादी ढांचे को व्यवस्थित रूप से नष्ट कर दिया गया है, सहायता अवरुद्ध कर दी गई है, और अस्पतालों को निशाना बनाया गया है, जिससे 2.3 मिलियन फिलिस्तीनी अकालग्रस्त और बुनियादी चिकित्सा सेवा के बिना ज़िन्दगी जी रहे हैं। हम संयुक्त राज्य अमेरिका की मिलीभगत और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की शर्मनाक उदासीनता की निंदा करते हैं। जमाअत फिलीस्तीनी जनता के साथ एकजुटता से खड़ी है तथा तत्काल और बिना शर्त युद्ध विराम, नाकाबंदी हटाने, तथा फिलीस्तीनी अधिकारों की पूर्ण बहाली, जिसमें वापसी का अधिकार और एक स्वतंत्र फिलीस्तीनी राज्य की स्थापना शामिल है की मांग करती है। हम भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि वह मात्र चिंता व्यक्त करने से आगे बढ़कर एक सैद्धांतिक रुख अपनाए तथा इजरायल द्वारा जारी नरसंहार के विरुद्ध निर्णायक अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की मांग करे।”
भारत की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने कहा: “अलीगढ़ में चार मुस्लिम मांस व्यापारियों पर हाल ही में हुआ हमला, जिनके कपड़े उतार दिए गए, उनकी पिटाई की गई और उन पर गौहत्या अधिनियम के तहत झूठा मामला दर्ज किया गया, भीड़ हिंसा के खतरनाक पैटर्न का हिस्सा है। बंटवाल में अब्दुल रहमान की हत्या से लेकर मंगलुरु में अशरफ की हत्या तक, अपराध बिना किसी दंड के जारी हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बावजूद, लिंचिंग विरोधी कानून कमज़ोर तरीके से लागू किए जा रहे हैं।हम भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता के प्रावधानों के सख्त कार्यान्वयन की मांग करते हैं, जिसमें लिंचिंग के मामलों में आजीवन कारावास और मृत्युदंड का प्रावधान शामिल है।”
मोतसिम खान ने विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में मुस्लिम घरों और मदरसों को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर के दुरुपयोग पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “बहराइच और श्रावस्ती जैसे जिलों में जमाअत प्रतिनिधिमंडल द्वारा हाल ही में किए गए फैक्ट-फाइंडिंग दौरे से पता चला है कि वैध पंजीकृत और अनुमोदित कई मदरसों को बिना किसी उचित प्रक्रिया के सील कर दिया गया या ध्वस्त कर दिया गया है, जो मुस्लिम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।” यह संवैधानिक मानदंडों का स्पष्ट उल्लंघन है और हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को दोहराया है कि “किसी संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि वह किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति की है। उन्होंने कहा, “हम प्रशासन से आग्रह करते हैं कि वह मनमाने ढंग से ध्वस्तीकरण को रोके और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करे।”
प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम ने देश के पूर्वोत्तर राज्यों में आई विनाशकारी बाढ़ और उसमें 30 से अधिक लोगों की मौत पर गहरा दुख और शोक व्यक्त किया और कहा कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद इस प्राकृतिक आपदा में पीड़ितों के साथ है। उन्होंने बताया कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद की राज्य स्तरीय इकाई बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए काम कर रही है। हम सरकार से मांग करते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत और पुनर्वास कार्य में और तेजी लाई जाए।