हौसलों से बहुत कुछ होता है
रुख़सत होती ज़िंदगी को , क्यों हर रोज़ खोता है
चंद लम्हों की ज़िंदगी मिली है , रो कर उन्हें भी खोता है ।।
ज़्यादा नहीं तो कम सही , क्यों मायूस ख़ुदी से होता है
हर चमकते सितारे का सामना , अँधेरे से हर रोज़ होता है
लकीरों में ज़िंदगी थोड़ी लिखी है , हौसलों से बहुत कुछ होता है ।।
कितनी भी किरने बिख़ेरी हो दिन में , सूरज को भी ढ़लना होता है
जीत का नग़मा गूँजेगा जहां में , हर हार में लड़ना होता है
गिरकर उठना भी सीख ले तू , सिकंदर वही तो होता है ।।
सागर की मौज़े बढ़ती जहाँ हैं , रस्ता वहीं पे होता है
औरों के रस्तों पे क्यों चलना , जब रस्ता ख़ुदी का होता है
हिम्मत भी रखना कदम – कदम पे , आसां कुछ नहीं होता है ।।
लोगों की फिर सुन – सुनकर क्यों , अपने वजूद को ख़ोता है
अपनो का अगर साथ हो , तो ग़ैरों से क्या कुछ होता है
लकीरों में ज़िंदगी थोड़ी लिखी है , हौसलों से बहुत कुछ होता है ।।
रचनाकार परिचय
-उमर सलीम
(इंजीनियरिंग छात्र,SKIT, Jaipur)