साहित्य

हौसलों से बहुत कुछ होता है-(कविता)

By khan iqbal

July 19, 2018

हौसलों से बहुत कुछ होता है

रुख़सत होती ज़िंदगी को , क्यों हर रोज़ खोता है

चंद लम्हों की ज़िंदगी मिली है , रो कर उन्हें भी खोता है ।।

ज़्यादा नहीं तो कम सही , क्यों मायूस ख़ुदी से होता है

हर चमकते सितारे का सामना , अँधेरे से हर रोज़ होता है

लकीरों में ज़िंदगी थोड़ी लिखी है , हौसलों से बहुत कुछ होता है ।।

कितनी भी किरने बिख़ेरी हो दिन में , सूरज को भी ढ़लना होता है

जीत का नग़मा गूँजेगा जहां में , हर हार में लड़ना होता है

गिरकर उठना भी सीख ले तू , सिकंदर वही तो होता है ।।

सागर की मौज़े बढ़ती जहाँ हैं , रस्ता वहीं पे होता है

औरों के रस्तों पे क्यों चलना , जब रस्ता ख़ुदी का होता है

हिम्मत भी रखना कदम – कदम पे , आसां कुछ नहीं होता है ।।

लोगों की फिर सुन – सुनकर क्यों , अपने वजूद को ख़ोता है

अपनो का अगर साथ हो , तो ग़ैरों से क्या कुछ होता है

लकीरों में ज़िंदगी थोड़ी लिखी है , हौसलों से बहुत कुछ होता है ।।

रचनाकार परिचय

-उमर सलीम

(इंजीनियरिंग छात्र,SKIT, Jaipur)