युवा क़लम

यादों का पिटारा

By khan iqbal

June 01, 2018

जब भी ऊब जाता हूँ मै इस वर्तमान से, तो फिर से जीने अपना अतीत खोल कर बेठ जाता हूँ अपनी पुरानी डायरी डायरी जिस पर उस समय के कुछ पल, कुछ किस्से और कुछ जज्बात लिख दिये थे मैने आज जब पढता हूँ उन्हे तो मुँह पर आ जाती है बच्चो सी मुस्कान हर कविता, हर शायरी के पिछे होती है एक कहानी और उसी कहानी में खो जाता हूँ मै जी करता है वहीं रहूँ उन्ही कहानियो में फिर से पाने की इच्छा है उन्ही पलो को पर फिर अतीत को पीछे छोड़ता, भविष्य को गोद मे लिये सामने आ खड़ा होता है वर्तमान और उसी के साथ आती हो तुम पलट कर सारे अतीत के पन्ने खोल देता हूँ एक नया पन्ना और उस पर लिख देता हूँ तुम्हे ऐसे ही हें कुछ पन्ने जिन पर फेली हैं अभी की कहानियाँ अभी के किस्से ये सब पन्ने भरता हूँ मै भविष्य की मुस्कुराहट के लिये की जब भी ऊब जाऊँ मै भविष्य मे मुस्कुरा सकूँ तब भी खोल कर अपनी यादो का पिटारा अब ये मै तुम पर छोडता हूँ कि ये जो नया पेज है वो रहेगा सदा वर्तमान या बन जायेगा उसी अतीत की तरह मेरी यादो का पिटारा

हंसराज आर्य

(छात्र,सेंट्रल यूनिवर्सिटी राजस्थान)