(द वायर की ग्राउंड रिपोर्ट : मोदी की जयपुर रैली में इस तरह जुटाई गई थी भीड़, लोगों से किए गए थे झूठे वादे)
कल जयपुर के लिए एक ऐतिहासिक दिन था जब देश के प्रधानमंत्री मोदी की रैली में भाग लेने के लिए 2.5 लाख ‘लाभार्थियों’ जयपुर पहुंचे थे। पहली बार ऐसा हो रहा है जब प्रधानमंत्री-लाभार्थियों की बातचीत हो रही है जिसके लिए पूरी राज्य की मशीनरी को लगा दिया गया चाहे फिर वो जिला कलेक्टरों द्वारा भेजे गए इनविटेशन कार्ड हों या प्रधानमंत्री से बात करवाने के झूठे वादे सभी तरीके अपनाकर ‘लाभार्थियों’ को रैलीस्थल पर लाया गया।
जालौर की रहने वाली सिंघनी का कहना है कि उन्हें बताया गया कि “अगर हम इस रैली में शामिल नहीं होंगे, तो मनरेगा के तहत दी जाने वाली हमारी मजदूरी हमेशा के लिए बंद कर दी जाएगी। तो, हमारे पास यहां आने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।”
उदयपुर के रहने वाले तेजा का कहना है कि समारोह के लिए जिला कलेक्टर से जब व्यक्तिगत तौर पर निमंत्रण पत्र मिला ते उनकी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। तेजा ने कहा, “हम बहुत ही सरल लोग हैं और हमारे लिए किसी से भी इस तरह का निमंत्रण पत्र मिलना बहुत बड़ी बात है।” तेजा की तरह, कई लोगों को कलेक्टर, विधायक, सरपंच या उनके क्षेत्र के किसी अन्य प्रभावशाली लोगों से ऐसे ही निमंत्रण मिले।
प्रधानमंत्री के सामने शिकायत करने के लिए कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिला था। झालावाड़ के संतोष का कहना था कि “मेरी बेटी अब लगभग दो साल की हो गई है लेकिन सभी आवश्यक कागजात जमा करवाने के बाद भी मुख्यमंत्री राजश्री योजना के तहत मेरे खाते में पैसा नहीं आया है। मैं मोदी से बात करने की उम्मीद कर रहा था क्योंकि ऐसा कहकर ही हमें यहां बुलाया है”।
उदयपुर के नाथू और गोपाल की भी कुछ इस तरह की ही कहानी है। इस आयोजन में श्रम कार्ड और जल स्वावलंबन अभियान योजनाओं के तहत पंजीकृत होकर आए दोनों ने कहा, “हमें किसी भी सरकारी योजना से कोई लाभ नहीं मिला है, लेकिन हम फिर भी मोदीजी से मिलने के लिए यहां आए हैं।”
राजस्थान सरकार ने पिछले दो सालों में कई योजनाएं शुरू कीं हैं जिनमें किश्तों में पैसों का भुगतान शामिल है। यहां तक कि जिन लोगों को पैसों की केवल एक ही किश्त मिली है उन्हें भी ‘लाभार्थियों के रूप में शामिल करके यहां बुलाया गया था। भरतपुर की सीमा का कहना है कि “पीएम आवास योजना के तहत, हमें केवल 30,000 रुपये की पहली किश्त मिली है और हालत ये है रेत का एक ट्रैक्टर भी 50,000 रुपये से अधिक का आता है।
दौसा के कालूराम और सुशील भी उस समारोह में आए 2.5 लाख लाभार्थियों में से एक है जिन्हें पीएम कौशल विकास योजना के तहत अभी तक रोजगार नहीं मिला है।
प्रधानमंत्री के साथ बात करने के लिए कई उपस्थित लोगों की उम्मीदें तब बिखर गईं जब मोदी ने 12 अलग-अलग सरकारी योजनाओं के केवल 12 लाभार्थियों के पहले रिकॉर्ड किए गए एकतरफा अनुभव का सिर्फ वीडियो सुना।
यहां तक कि जब पीएम के मंच पर रहते हुए लाभार्थियों को उनसे बातचीत करने का मौका मिला, तब भी उनको अपने अनुभवों के बारे में कुछ भी बोलने से मना किया गया था। लाभार्थियों को कहा गया कि फूल देकर सिर्फ धन्यवाद बोलें।
बीजेपी राज्य सरकार ने इस कार्यक्रम पर 7.23 करोड़ रुपये खर्च किए। राज्य भर से 2.5 लाख लाभार्थियों को बुलाने के लिए करीब 5,579 बसों का इस्तेमाल किया गया। हालांकि, जिस प्रक्रिया से इन लोगों को चुना गया है उसका खुलासा अभी तक नहीं किया गया है।
रैलीस्थल पर लाभार्थियों की एकमात्र पहचान उनको दिए हुए रंगीन दुपट्टे ही थे जो विभिन्न सरकारी योजनाओं के हिसाब से तय किए गए थे। असल में, जो लोग उपस्थित थे, उनके पास पंचायत समितियों द्वारा बनाए गए कार्डों के अलावा कोई लाभ मिलने का और कोई भी सबूत नहीं था।
मुख्यमंत्री राजश्री योजना के तहत लाभार्थियों के रिकॉर्ड रखने वाले आंगनवाड़ी केंद्र अपने वार्डों से जाने वाले लाभार्थियों के बारे में अनजान थे। जयपुर की एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ज्योति ने बताया कि “हमें हमारे क्षेत्र से लाभार्थियों के नाम देने के लिए कोई जानकारी नहीं मिली। शायद सभी को व्यक्तिगत रूप से बुलाया गया था”।
सवाई माधोपुर में, जिला शिक्षा अधिकारी ने जयपुर में रैली के लिए लाभार्थियों को बस तक पहुंचाने के लिए सरकारी स्कूलों के सभी प्रधानाचार्यों को नोटिस जारी कर आदेश दिया था। सीकर के एक सरकारी शिक्षक ने कहा कि, “कोई भी नहीं जानता कि इन लोगों को लाभ मिला है या नहीं, हमें तो बसों को भरने में मदद करने के लिए कहा गया था।”
लाभार्थियों में एक अजीब चीज और थी कि कुछ ने दुपट्टा उस योजना का पहन रखा था जो उनके लिए नहीं थी जैसे विशेष रूप से महिलाओं के लिए राजश्री और उज्ज्वला योजनाओं के दुपट्टे कई पुरुषों ने पहन रखे थे।
जयपुर के विभागीय आयुक्त टी. रविकांत ने कहा कि, “मुझे पता नहीं है कि लाभार्थियों को निमंत्रण पत्र देने के लिए कलेक्टरों को कोई आदेश मिला था। कलेक्टर इस बारे में जवाब दे सकते हैं। जो भी विभाग इन योजनाओं को चला रहा था उन्हें ही लाभार्थियों को उनके निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के माध्यम से सूचित करना था।”
(TheWire.in के लिए ये रिपोर्ट श्रुति जैन ने की है हम यहां उसका अनुवादित लेख छाप रहे हैं।)