? मेरे पिता मेरे आदर्श ?
मैं एक शख्स को जानता हूं उसे अपना आदर्श मानता हूं मैं उससे अत्यधिक प्रेम करता हु और इससे कई ज्यादा वो करता है मेरे परिवार से वो औरो की तरह स्वार्थी नही, स्वार्थहीन उसे मानता हूं ।।
इसीलिए तो वो द्विदूर चला गया है मुझसे मेरी और मेरे परिवार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए एक दशक से उसे प्यार नही मिला क्योंकि वो प्यार बांटने में ही विश्वास रखता है उसे प्रेम की एक मिसाल मानता हूं ।। मैं भी उससे प्रेम करता हु ये नही बताना चाहता इस अल्प प्रेम को उस अति प्रेम के समक्ष नही लाना चाहता उसके त्याग की सीमा को जानता हूं ।। ना जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है परिस्थितियों और समय ने भी उसका साथ नही दिया फिर भी उसे धैर्य है धैर्य की मूर्ति उसे मानता हूं ।।
और उसका प्रतिरूप मुझे अपने में नज़र आने लगा है जिस तरह प्रत्येक दुःख को कृपा समझ कर स्वीकार करता है वो, ना जाने क्यों वो शांत रहना पसंद करता है सहनशीलता की सीमा उसे मानता हूं ।।
प्रकृति ने अपने रूपो का उसे आदी कर दिया है अब उसे सर्दी गर्मी का अहसास नही होता ना दिन मे चैन है उसको रातों को नही सोता अपने परिवार की इच्छाओं में ही वो जीवन व्यतीत कर रहा है उसे इंसानो से परे मानता हूं।।
प्राथना है ईश्वर से वो मुझे सक्षम बना दे में उसके समकक्ष खड़ा होना चाहता हु उसके दुःखों का बोझ लेकर उसे सुखों का उपहार देना चाहता हु ओर उन्हें ये अहसास दिलाना चाहता हु की उनका बेटा अब दक्ष बन गया है मुझे गर्व है कि में उनका बेटा हु संसार मे उनसा कोई नही ये मानता हूं में अपने पिता को ही अपना आदर्श मानता हूं ।।।।
–इनायत अली
निवाई, टोंक राजस्थान