माओवाद के नाम पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर शहीद स्मारक जयपुर पर प्रदर्शन कर प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री महाराष्ट्र के नाम ज्ञापन पारित किया गया। 5 सितम्बर को सांय 5 बजे से शहीद स्मारक गर्वमेन्ट होस्टल के पास जयपुर पर मानवाधिकार, राजनैतिक दलों व जन संगठनों के लगभग 200 प्रतिनिधियों ने एक साथ विरोध की आवाज बुलंद करते हुये मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हो रहे झूठे मामले वापस लेने की मांग की। सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने के लिए सभी वक्ताओं ने अपने विचारो में अंसतोष और असहमती के अपराधिकरण का विरोध किया।
वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार जिन वादों के सहारे सत्ता में आई थी उन पर पुरी तरह असफल रही और इसी असफलता को छिपाने के लिए यह हथकण्डे अपना रही हैं। प्रदर्शन के दौरान वक्ताओं ने देश के दलित आंदोलनों को नक्सली और माओवादी बता कर बदनाम करने के कुत्सीत प्रयास की भी निन्दा की तथा मांग की कि भीमा कोरेगांव के असली अपराधियों, जिनका नाम पहली एफआईआर में दर्ज था तथा जिनके लिए पुलिस ने सर्वोच्य न्यायालय मे हल्फनामा देकर आरोपित बताया था, उन्हें गिरफ्तार करे तथा सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बिना शर्त रिहा करे।
प्रधानमंत्री व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन
हम 28 अगस्त 2018 को हुए गैर कानूनी छापे व सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरूण फरेरा, वर्नन गोनजाल्वेज़ तथा वरवरा राव की महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारियों की कड़ी निन्दा करते है तथा विरोध जताते हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ये गिरफ्तारियां पुलिस द्वारा अपने राजनैतिक आकाओं के साम्प्रदायिक व जातिगत पुर्वाग्रहों को आगे बढाने को लगातार जारी दमन के सिलसिले में नई कड़ी भर हैं। लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए कार्यरत इन कार्यकर्ताओं पर हमला वास्तव में देश के गरीबों व वंचित समुदायों पर हमला है, जिनके पक्ष में यह मानवाधिकार कार्यकर्ता खड़े रहते है।
गिरफ्तारियों के महत्वपूर्ण पहलू हैं
यह पांच गिरफ्तारियां, विश्रामबाग पुलिस थाना पूणे में दायर एफआईआर संख्या 4/2018 जो भीमा कोरेगांव की हिंसा के संबंध में है, के अन्तर्गत की गई हैं।
इसी एफआईआर के तहत 6 जून को सुरेन्द्र गाडलिंग, शोमा सेन, रोना विल्सन, महेश राउत एवं सुधीर धवले की गिरफ्तारियां की गई थी।
यह सब कार्यवाही विधि विरूद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम 1967 (UAPA) को राजनैतिक मतभेदो और असंतोष को समाप्त करने के औज़ार जैसा उपयोग करना है। आतंकवादियों का समर्थन, उनको चन्दा देना तथा आतंकवादी संगठन का सदस्यता जैसे यू.ए.पी.ए. के कडे प्रावधानों को बाद में इस एफआईआर में जोड़ा गया ताकि जून तथा अगस्त माह में हुई गैर कानूनी गिरफ्तारियों को अंज़ाम दिया जा सके।
महत्वपूर्ण रूप से, हिंसा के शुरूआती आरोपी मिलिंद एकबोटे तथा साम्भाजी भिड़े जिनका नाम भीमा कोरे गांव की हिंसा की एफआईआर में दर्ज हैं, के प्रति महाराष्ट्र पुलिस ने यू.ए.पी.ए. के कोई कानूनी प्रावधान नहीं लगाए हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को फरवरी 2018 में दिए गए हलफनामे में यह कहा गया है कि मिलिंद एकबोटे ने भीमाकोरे गांव की हिंसा की चिंगारी भडकाई थी। परन्तु महाराष्ट्र सरकार की पुलिस ने एकबोटे और भिडे मे से एक को गिरफ्तार कर छोड दिया तथा दूसरे से पूछताछ तक नहीं की हैं।
अगस्त की इन गिरफ्तारियों में कानूनी कार्यवाही के सभी प्रक्रिया का उल्लंघन करने से कानून के शासन की खिल्ली उडी है। गौतम नवलखा की गिरफ्तारी के संबंध में सी.जे.एम. साकेत न्यायालय में Habeas Corpus याचिका में न्यायाधीश ने पुलिस की कार्यवाही व ट्रान्जीट रिमाण्ड लेने के प्रयास में कई गंभीर गलतिया गिनाई है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं को नक्सली एवं आतंकवादी तथा उन पर प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश करने जैसी बेतुकी व झूठी खबरे फैलाई जा रही हैं। इससे यह साबित होता है कि जो व्यक्ति सत्ताधारी सरकार की कुनीतियों का विरोध करते हैं उन्हें भयभीत कर चुप कराने का प्रयास किया जा रहा हैं।
UAPA की धाराओं को कार्यकर्ताओं पर लगाने का कारण सिर्फ यह कि इन धाराओं में जमानत मिलना बेहद कठिन है तथा कारागार में बेहद लम्बा समय बिताना पड़ता हैं। सर्वोच्य न्यायालय 29 अगस्त के आदेश में यह कहा गया है कि असंतोष व भिन्न विचार रखना जनतंत्र में सेफ्टी वाल जैसा है और अगर इन पर रोक लगी तो जनतंत्र नामक प्रेशर कुकर फट सकता है।
हमारी मांगें :-
तुरन्त तथा बिना किसी शर्त के विश्रामबाग थाना पूणे एफआईआर नं. 4/2018 को खारिज किया जाए तथा इसके तहत हुई गिरफ्तारियां को रद्द किया जाए।
छापों के दौरान लेपटाप, मोबाईल फोन जो जब्त हुए, उन्हें तुरन्त लौटाया जाए।
महाराष्ट्र पुलिस के इस शातिर व गैर कानूनी छापों और गिरफ्तारी पर केन्द्रीय सरकार द्वारा कार्यवाही होनी चाहिए। सांभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे तथा उनके साथियों की तुरंत गिरफ्तारी होनी चाहिए।
UAPA के अंतर्गत दर्ज हुए झुठे केसो को खारिज किया जाए तथा यह राजनैतिक प्रतिशोध खत्म किया जाए।
UAPA असंवैधानिक है तथा इस अधिनियम को समाप्त किया जाए।
प्रदर्शन में भाग लेने वाले संगठनों में प्रमुख हैं :-जमाअत ए इस्लामी हिन्द राजस्थान, पी.यू.सी.एल. राजस्थान, दलित आदिवासी अल्पसंख्यक दमन प्रतिरोध आंदोलन, राजस्थान अल्पसंख्यक अधिकार मंच, समग्र सेवा संघ, दलित अधिकार केन्द्र, एन.एफ.आई. डब्ल्यू., एडवा, सी.पी.एम., सी.पी.आई., सी.पी.आई.एम.एल., वेलफेयर पार्टी आॅफ इण्डिया, घरेलू कामगार यूनियन, एस.आई.ओ., विविधा, रूवा, सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान, मजदूर किसान शक्ति संगठन इत्यादि जन संगठनों व राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की व अपनी बात रखी। प्रदर्शन में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला, मजदूर, छात्र, मानवाधिकार एवं सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता शामिल रहे। जिनमेे कविता श्रीवास्तव, पप्पू, राशिद, निशा सिद्धू, टेकचन्द राहुल, मुकेश निर्वासित, सवाई सिंह, मंजुलता, मोहम्मद नाज़ीमुद्दीन,डॉ. मो. इक़बाल सिद्दीकी प्रमुख रहे।