By: खान शाहीन
जब हम महिला अधिकार,स्वतंत्रता ओर उनके समक्ष चुनोतियों पर बात करते हैं तब हमें हमारे अतीत का विस्तारवादी विश्लेषण करने की आवश्यकता पड़ती है ओर ये ज़रूरी भी है इसलिए कि वर्तमान भारत के संस्कार और परम्परा की नींव प्राचीन भारत के इतिहास से झलकती है और भारत का यह अतीत ही यहां का परिचय रहा है।
प्राचीन भारत मे महिलाओं की स्थिति और दैनिक जीवन पर जब हम जानने का प्रयास करते हैं तब साफ शब्दों में ये समझ पाते हैं कि उस समाज मे महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नही थी,पुरुष प्रधान समाज मे महिलाओं को अपनी इच्छाओं के अनुसार उपयोग में लिए जाने तक सीमित किया रखा जाता था।भारत के कुछ समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक, सामाजिक जिंदगी का एक हिस्सा बन गयी थी। सती प्रथा एक ऐसी विवादस्पद समाजिक प्रथा रही जिसने भारत के सामाजिक जीवन का साथ बहुत बाद तक नही छोड़ा,सती प्रथा का रूप विधवा को अपने पति की चिता में अपनी जीवित आहुति देने से होता था। हालांकि यह कृत्य विधवा की ओर से स्वैच्छिक रूप से किये जाने की उम्मीद की जाती थी, ऐसा माना जाता है कि कई बार इसके लिये विधवा को मजबूर किया जाता था। 1829 में अंग्रेजों ने इसे समाप्त कर दिया।
सती प्रथा का परिचय करवाना मैंने इसलिए ज़रूरी समझा ताकि हम वर्तमान भारतीय समाज के बनने की पृष्ठभूमि को समझ सकें कि यदि आज के भारत में महिलाओं की स्थिति पर बात करने का हम प्रयास कर रहे हैं तो यह वही समाज है जिसने सती होने जैसी भयावह प्रथा को कभी झेला है,यह काम किसी दूसरे ग्रह से आए हुए लोगों का नही था बल्कि यह हमारे ही समाज की एक समस्या थी जिसे बनाए रखने तक की लड़ाई हमारे यहां लड़ी गयी।
यदि वर्तमान भारत में महिलाओं की स्थिति को हम प्राचीन भारत या बीत चुकी कुछ सदियों के ऐतिहासिक पन्नों से मिलाकर देखते हैं तो बदलाव सिर्फ कुछ बिंदुओं पर हुआ है।इसमें सबसे बड़ा और विचारनीय परिवर्तन नारी स्वतंत्रता की स्थिति के कारण बदल जाने का हुआ है,प्राचीन भारत मे महिलाओं की इस स्थिति का कारण पुरुष मानसिकता थी लेकिन वर्तमान भारत में महिलाएं स्वयं भी इसकी ज़िम्मेदार है। यदि मुझसे कोई प्रश्न करता है कि आखिर महिलाएं खुद क्यों चाहेंगी कि उनके साथ अन्याय हो,समाज मे उनके सम्मान को जगह ना मिले या उन्हें प्रताड़ित किया जाए तब मैं आगे की इन पँक्तियों को पढ़ने का अनुरोध करूंगी कि- ये कहना एकदम ठीक होगा कि आज की महिलाएं उस दौर की महिलाओं से बढ़कर इसलिए है कि समाज मे उन्हें कई अधिकार प्राप्त हुए हैं।शिक्षा के अधिकार पर अगर बात की जाए तो महिलाओं ने इस क्षेत्र में समाज को प्रभावित किया है या भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं की स्थिति पर अगर गौर किया जाए तो भी कई बिंदु हमारे सामने है जो कि एक सुनहरा भविष्य हमारे समक्ष रखते हैं परंतु फिर भी मुझे इस लेख को लिखने की आवयश्कता क्यूँ पड़ी ? और क्यूँ महिलाओं की स्थिति आज दयनीय है और आखिर वजह क्या है ? तब वजह जानने के लिए हमें यह समझ लेना जरूरी होगा कि हम शेक्षिक स्थिति ठीक हो जाने के बाद भी क्यों बाज़ार के चलने का साधन बन रही हैं ?
नारीवादी संगठन अपने विचारों का बखान करते हुए बाज़ार में बिक रही महिला के सवाल पर आखिर खामोश क्यूँ रहते हैं ? उदहारण के रूप में आज फ़िल्म के फ्लॉप हो जाने का एक बड़ा कारण फ़िल्म में अश्लीलता और देह प्रदर्शन का ना होना होता है।जनता के सामने ऐसी ऐसी फ़िल्म परोसी जाती हैं जिनमे नग्नता ओर अश्लीलता की हदें पार होती है तब सवाल यही उठता है कि आखिर महिला के शरीर को पैसा कमाने के लिए क्यों उपयोग में लिया जा रहा है ? दुख की बात यह भी है कि आखिर इसपर खुद महिलाएं क्यों खामोश है ? दरअसल मुद्दा नारी की स्वतंत्रता का है,जिसे नंगेपन को सामाजिक स्वकृति देकर नही बल्कि नारी को सही रूप में स्वतंत्रता देकर पूरा करना होगा।इसके कई और भी कारण है चाहे “पोर्न इंडस्ट्री”के व्यापक रूप में पनपने से हो या समाज में मॉडर्निटी के आ जाने से हो।
समाज मे महिलाओं की स्थिति के ऊपर बात करते हुए पिछले कुछ समय पर हम बात करें तो देखते है कि दामिनी को सरेआम घेर कर मार दिया जाता है।देश मे माहौल बनता है कि अब बलात्कार की घटनाएं कभी ना हो सकेंगी परन्तु सोचने की बात है कि 2012 के बाद ऐसी घटनाओं का आंकड़ा हमारे यहां सबसे ज़्यादा बड़ा है।अभी हाल ही की एक घटना राबिया के के साथ हुई जहां उसे 5 युवकों द्वारा बलात्कार की कोशिश में विफल होने पर काट कर मार दिया गया।
प्रश्न सरकार और समाज के बुद्धिजीवी वर्ग के साथ खुद नारीवादी विचारकों की मंशा पर भी उठता है कि क्या राजनीतिक पेचीदगियों के साए में ही हम नाचते रहेंगे कि तलाक और मुस्लिम महिलाओं के अधिकार पर हम बड़े ज्ञान दे लें या पर्दा प्रथा के विरुद्घ जमकर लड़ें या इसके साथ या इसके विपरीत हम समाज मे महिलाओ को जिस तरह बेचा जा रहा है उस बिंदु पर भी विचार करें। -खान शाहीन