–गौतम कुमार
वह एक राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री, न्यायिक और सामाजिक सुधारक थे। उन्होंने दलित, महिला और श्रमिक अधिकारों को प्रेरित किया। उन्होंने दलितों को मानव के रूप में मान्यता देने के लिए अपने पूरे जीवन संघर्ष किया क्योंकि वह दलित भी थे और वह खुद ऊंची जाति के हिंदुओं के अत्याचारों से गुजर चुके थे। उन्हें एक ही नल से पानी पीने की इजाजत नहीं थी जिसमें से अन्य बच्चे पीने गए थे। वह दूसरे विद्यार्थियों से अलग बैठते थे और बैठने के लिए अपनी चटाई घर से लाते थे, कभी-कभी उन्हें और उनके भाई-बहन को कक्षा के बाहर बैठ कर भी पढ़ना पड़ता था। नाई ने उन्हें उनके बाल काटने के लिए भी मना कर दिया था। उनकी शादी भी रात के समय हुई जब बाजार बंद हो गया क्योंकि उच्च जाति के लोग अछूतों को दिन में अपने उत्सव, समारोह करने की अनुमति नहीं देते थे। यहां तक कि रिक्शा और तांगा वालों ने उन्हें आधी रात के समय भी ये कहते हुए बैठाने देने से इनकार कर दिया कि फिर कोई भी मेरे तंग में फिर से नहीं बैठेगा। और फिर इस व्यक्ति ने बड़ौदा के महाराजा की मदद से कोलंबिया विश्वविद्यालय से इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की। वह तर्कसंगत तर्क देने में बहुत अच्छे थे इसलिए कांस्टीट्यूइंट असेम्बली में उनके बिल आसानी से पारित हो जाते थे और सभी उनकी तर्क-वितर्क क्षमता की सराहना करते थे। उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए अपने सर्वोत्तम प्रयास किए हैं लेकिन जाति व्यवस्था भारतीय हिंदुओं के जीन में आ गई थी इसलिए यह एक मुश्किल काम था। लेकिन तब भी बाबासाहेब ने बहुत सारे काम किए हैं जैसे अछूतों को आरक्षण, अस्पृश्यता को खत्म करने जैसी सुविधाएं प्रदान करना।
आज वे हमें जीवन का एक सबक सिखा रहे हैं कि जो कुछ भी बाधाएं आपके जीवन में आती हैं, शिक्षा की शक्ति इसे हटा सकती है क्योंकि एक दलित छात्र रूप में उन्होंने इतनी कठोर परिस्थितियों में भी ख़ुद को स्थापित किया जब कोई भी इसके बारे में सोच भी नहीं सकता था। आज भारत को अपनी शिक्षा प्रणाली पर अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि यंहा विश्व मे सबसे बड़ी युवा आबादी है और बिना शिक्षा के यह हमारे देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है।
(लेखक केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान में सार्वजनिक नीति विभाग, कानून और प्रशासन के छात्र हैं)