साहित्य

बज़्म

By khan iqbal

March 30, 2018

बज़्म

खाली गये थे, जिल्लत से भरकर लौटें हैं हम,

अभी-अभी तेरी बज्म से जलील होकर लौटे है हम

तुम तो कहते थे सांस का एक-एक कतरा बोझ लगेगा तुम्हारे बिन,

सांस तो क्या जीते जी जन्नत की सैर कर रहे हो तुम

मंसूबे नापाक थे तुम्हारे पहले से ही या,

अभी-अभी तुम्हारी असलीयत से वाकिफ हुए है हम

आगोश में थे तो लगता था तुम ईश्वर की बेशकीमती भेंट हो,

अब मालूम हुआ तोहफे की आड़ में ठगे गए थे हम

आजार है ये इश्क तेरा , एहसान इतना कर दो की

मनहूसियत फैलाने हमारी कब्र पर भी ना आना तुम!!

-संगीता चौधरी