जनमानस विशेष

पूछते हैं वो कि ग़ालिब कौन है कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या

By khan iqbal

December 27, 2018

मिर्ज़ा असदुल्लाह खाँ गालिब मॉडर्न डिज़ाइन का काला चश्मा पहने कुर्सी पर पाँव पे पाँव धरे बैठे हैं ओर कोई आकर कह रहा है कि साहब आप कौन ? गालिब अपने पास खड़े चार पांच साथियों से मुख़ातब हुए और कह दिया ‘पूछते हैं वो कि ‘ग़ालिब’ कौन है कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या”

मुझे गालिब की अदा में उनकी अकड़ ने बहुत प्रभावित किया’ कहते हैं की गालिब की अकड़ का अंदाज़ा उनके इस अंदाज़ से लगाया जाता है की बुढ़ापे में भी उनका एटीट्यूड लेवल 18 साल के लौंडे जैसा था ओर इसे उनके इस ऊपर लिखे शेर से महसूस किया जा सकता है। गालिब को अपने गालिब होने का अंदाज़ा उनके गालिब हो जाने से पहले हो गया था,गालिब लिखने लगे और एक दिन गालिब बन गए तब कहा कि

“रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’ कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था

गालिब ने अपनी तुलना मीर तकी मीर से की ओर ये हौसला उन्हें अपने आप मे गालिब हो जाने के बाद मिला।

गालिब एक बार पैदा होता है एक बार जीता है और एक बार ही खामोश हो जाता है, गालिब के बाद बहुत हुए पर गालिब जैसा ना हुआ।

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता

आज गालिब चौसठ खंबा के पास हजरत निजामुद्दीन दरगाह के करीब अपनी कब्र में मौजूद हैं लेकिन उनकी लिखावट आज भी जारी है।