राजस्थान

दलित एक्टिविस्ट को 15 लोगों ने घेरा बोले तेरी हत्या करना है फेसबुक पोस्ट से समस्या है

By khan iqbal

July 13, 2018

यूं समझ लीजै कि ‘मॉब लिंचिंग’ से बच गया !-भंवर मेघवंशी

(ये घटना दलित एक्टिविस्ट भँवर मेघवंशी के साथ घटित हुई है जिसे उनकी फेसबुक वॉल से हूबहू यंहा लिखा जा रहा है)

कल भीलवाड़ा जिले के कुछ मसलों को लेकर पुलिस अधीक्षक से मिलने गया,वहां पर पहले से एक ज्ञापन चल रहा था, इसलिये मुखर्जी पार्क में थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा।

आम तौर पर अकेले घूमता हूँ, बिना सिक्योरिटी, बिना हथियार ,बिना कोई संगी साथी ,हालांकि कल घर घर अम्बेडकर अभियान के संस्थापक डाल चन्द जी रेगर और पथिक टूडे के संपादक नंद लाल जी गुर्जर साथ थे।

जब डाल जी और नन्द जी चले गए, मैं अकेला बच गया, तब एक पहले से घात लगाए झुंड ने अचानक मुझे घेरा ।

यह बिल्कुल अप्रत्याशित था ,शुरू में दो लोग आए, फिर चार ,फिर कुछ और.. इस तरह 10 -15 का समूह इकट्ठा हो गया ।

ये लोग मेरे सोशल मीडिया पर लिखने से नाराज थे ,उनका कहना था कि वो मुझे मार कर बाद में खुद भी मर जायेंगे , मैंने उनसे कहा कि मेरा लिखना जारी रहेगा और अगर उनको मेरे लेखन से तकलीफ़ है तो मुकदमा दर्ज करवा सकते हैं, कोर्ट जा सकते हैं। लेकिन उनका कहना था कि वो तो सड़क पर ही निपटना चाहते हैं, मुझे मार कर मर जाना चाहते हैं।

यह झुंड ‘मॉब लिंचिंग’ के मूड में था ,जब वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे, तब मैंने उनसे कहा कि उनको जो करना है, मारना है तो वे मार सकते हैं, मैं तो अकेला ही हूँ और ऐसे ही अकेले देश भर में घूमता हूँ ।

वेे लोग बहुत अग्रेसिव थे , उनका इरादा मेरा वहां से अपहरण करके कहीं दूर ले जा कर कुछ करने का था ।

इस झुंड का मुखिया कुछ पोस्टें डिलीट करवाना चाहता था ,जिनसे उनको प्रॉब्लम थी। मुझे तात्कालिक परिस्थितियों के अनुसार जबरन उनकी बात माननी पड़ी।

बाद में वो लोग जिनके लिए मुझे एस पी भीलवाड़ा प्रदीप मोहन जी से मिलना था, वो भी मौके पर पहुंच गए और मेरे वरिष्ठ सहयोगी हीरजी भी तब तक मौके पर आ गए, उन्होंने उक्त झुंड को समझाने की कोशिश भी की पर वो लोग इस बात पर अड़े हुए थे कि वो तो मर्डर करके ही मानेंगे क्योंकि मेरे लिखने से उनकी ज़िंदगी बर्बाद हो गई है।

खैर ,मैंने उनसे यह मोहलत ली कि मुझे पहले कुछ पीड़ितों के मामले में पुलिस अधीक्षक से मिलने तक की छूट दी जाये ,लौटने पर वो मुझे मार दें ,ये लोग कईं छोटे छोटे झुंडों में वहां मौजदू थे ।

मेरे पुलिस अधीक्षक कार्यालय में चले जाने के बाद कई साथी जिनको यह सूचना मिली ,मौके पर पहुंचे ,मेरे शुभचिंतकों के लिए यह घटना आक्रोशित करने वाली थी ,जल्दी ही यह बात फैलनी लगी ,मुझे मैसेज मिला तो मैने साथियों से इसे इश्यू नहीं बनाने की अपील की।

पुलिस अधीक्षक ने उक्त लोगों के खिलाफ त्वरित कार्यवाही के लिए मुझे रिपोर्ट देने के लिए कहा ,पर मैंने उनसे कहा कि इनमें ज्यादातर लोग युवा है ,उनका कैरियर बर्बाद हो, ऐसा मैं कतई नहीं चाहता हूँ।

मैं लौट कर बाहर उक्त समूह से संवाद के लिए जाना चाहता था ,पर पुलिस ने इसकी इजाजत नहीं दी ,मुझे उनसे दुबारा मिलने या बात करने का अवसर नहीं मिल पाया।

देर शाम तक साथियों का रोष चरम पर पहुंच गया, लोगों को संभालना भारी पड़ गया ।

परस्पर संघर्ष न हो ,इसलिये इस पोस्ट में नामोल्लेख नही कर रहा हूँ ,मैं तो पढ़ने लिखने वाला सामान्य इंसान हूँ ,कोई गैंग तो चलाता नहीं कि सड़कों पर निपटूं ।

जो हुआ ,वह तो हो गया,मैं अपने साथियों से संयम की अपील करता हूँ, मैं कोई हिंसा नही चाहता ।अगर वो लोग कभी अपने इरादों में कामयाब भी हो जाएं,तब भी प्रतिक्रिया में कुछ नहीं हो,यही मेरी इच्छा है।

रही बात मरने मारने की तो मौत तो सबको आयेगी, मुझे भी और मेरे कातिलों को भी, यहां किसे अमरत्व प्राप्त हुआ है, मैं जानता हूँ कि मुझे मारने वाले भी एक न दिन मर ही जायेंगे,कोई 200 साल नही जियेगा।

बहरहाल उन सब अपनों का शुक्रिया ,जिन्होंने इस आफ़तकाल में तुरंत सहायता की।

-भंवर मेघवंशी

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं दलित एक्टिविस्ट हैं)