दंगों के बीच:मुस्लिम युवा का आम हिन्दू के नाम पत्र,ऐ मेरे प्यारे भाई!
आम हिंदू के नाम प्यारे दोस्त, बहुत दिन हो गए थे तुमसे सीधे बात किये!आज मन बहुत विचलित है तुम्हारा भी है!हम दोनों सदियों से साथ रहते और खाते आये हैं!बाहों में बाहें डाल कर क़दम से क़दम मिला कर!
साथ मंदिर और मस्जिद जाते साथ स्कूल और घर जाते!हर दीवाली साथ पटाख़े चलाते और हर ईद साथ सिवइयां खाते!हम कभी अलग नहीं थे मेरे प्रिय तुम्हारी बहन मेरी बहन थी और मेरी अम्मी को तुम अम्मा जी बुलाते थे!
मेरे अब्बा और तुम्हारे बाऊजी घण्टों बातें करते थे!तुम्हारे घर की शादी हमारे घर के दालान में होती थी और हमारे घर की शादी में तुम बहुत महनत करते थे!
लेकिन प्रिय हालात बदल गए देश की राजनीति और सत्ता के भेड़ियों ने हमारे नाम पर राजनीति की!हमारे मंदिर,मस्जिद,नमाज़,अज़ान,आरती, सब पर वोटों की आग जलाई!
लव ज़िहाद के नाम पर भाई बहन के रिश्ते को ज़लील किया!लेकिन देखो हम भी कितने कमज़ोर निकले!
लेकिन देखो हम भी कितने कमज़ोर निकले!एक दूसरे से विश्वास ही उठ गया!हम ख़ूनी बन गए प्रिय ख़ूनी!वो सत्ता की मलाई खाते रहे और हम!उन्हीं गंदी नालियों,टूटी सड़कों,गन्दे अस्पतालों में लिथड़ते रहे कटते और काटते रहे!
आख़िर हमें क्या मिला? अपनों की एक अदद मौत!और इसके सिवा क्या!
प्यारे भाई आओ फिर से गले मिलते हैं!नफरतों की दीवारों को तोड़ते हैं!आओ दिलों को दिलों से मिलाते हैं!आओ फिर से देश को ऊंचाइयों पर ले जाने की जी तोड़ मेहनत करते हैं!
हाथ में हाथ डाल कर किन्हीं खेत खलिहान और गलियों में प्रेम और भाईचारे के गीत गाते हैं! सत्ता के लिए आग लगाने वालों को को दफ़न करते हैं!
तुम्हारा भाई
एक मुस्लिम युवा