By:Majid majaz
“एक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया कोई जल्दी में है कोई देर से जाने वाला”।
ज़िन्दगी की तरह मौत भी एक हक़ीक़त है। लेकिन कभी कभी ऐसी भी मौत होती है जो हक़ीक़त होते हुये जी चाहता है कि सच न हो। वो मौत है आबरु-ए-ग़ज़ल जगजीत सिंह जी की।
एक ऐसा शख़्स जिसने सिर्फ़ मोहब्बत बाँटा, मोहब्बत किया और मोहब्बत में जिया।
वो शख़्स जिसने ग़ालिब को हम सब से रुबरु कराया। जिसने ज़िंदगी के तमाम पहलुओं को एक बेहतरीन अंदाज़ में पेश किया।
जगजीत सिंह ज़िंदगी के एक अंदाज़ का नाम है, मोहब्बत की आवाज़ का नाम है। जगजीत को सुनना गोया यूँ लगता है कि मेरा प्यारा मुल्क हिंदुस्तान बोल रहा हो, हमारी ज़ुबान उर्दू बोल रही हो।
ख़ैर जगजीत आज नहीं हैं.. यहाँ पर रहना किसी को नहीं है। पर उनका काम, उनका कलाम हमेशा के लिए अमर है। आज भी लोग ख़ामोश और उदास रातों में उनकी ग़ज़ल सुनकर अपने ग़मों को भुलाते हैं।
इसी शेर के साथ ग़ज़ल के बेताज बादशाह जगजीत सिंह की यौम-ए-पैदाईश पर श्रद्धांजलि,
“तुम चले जाएँगे तो सोचेंगे, हमने क्या खोया हमने क्या पाया…..”