By:Pro.Majid Majaz
इसी चमकते भारत में महज़ आठ साल की बच्ची आसिफ़ा का रेप करके उसे मार डालते हैं, फिर अपराधियों को छुड़ाने के लिए “हिंदू एकता मंच” रैली निकालती है, प्रोटेस्ट करती है। भाजपा नेता उस बलात्कारी और क़ातिल को “राष्ट्रवादी” कह रहे हैं। यही नहीं कांग्रेस के लीडर भी उस अपराधी के पक्ष में खड़े नज़र आ रहे हैं।
अब सवाल ये उठता है कि क्या यही वो पाँच हज़ार साल पुरानी सभ्यता है जिसपर सब फ़ख़्र करते हैं? क्या हत्यारों एवं बलात्कारियों का समर्थन ही राष्ट्रवाद है? कितनी हिंसक एवं अमानवीय समाज बन चुका है जहाँ लगता है जैसे नफ़रत को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो।
पिछले सत्तर सालों में बस इतना सा हमारे लोकतंत्र ने सफ़र तय किया है कि अपराधियों को “राष्ट्रवादी एवं देशभक्त” कह कर संबोधित किया जा रहा है।
अफ़सोस हम कहाँ आकर पहुँच गए। शर्म का दौर है, पश्चाताप का वक़्त है। ख़ुद की शक्ल से नफ़रत करने का वक़्त आ गया है।